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रहस्यमय तलातल घर- अहोम वैभव का प्रतीक

ऊपरी असम में स्थित जीवंत शहर शिवसागर (गुवाहाटी से लगभग 360 किलोमीटर उत्तर पूर्व) में असम के राजनीतिक इतिहास के एक शानदार अध्याय के अवशेष पाए जाते हैं। इस शहर में, ब्रह्मपुत्र घाटी में 600 साल तक शासन करने वाले, शक्तिशाली और उद्यमशील, अहोम राजवंश द्वारा निर्मित कई उल्लेखनीय स्मारक हैं। इस राजवंश के अधीन ही इस क्षेत्र की राजनीति, अर्थव्यवस्था, समाज, कला और संस्कृति का महत्वपूर्ण विकास हुआ। अहोम शासकों की वास्तुशिल्पीय विरासत उनकी शक्ति, उनके द्वारा नियंत्रित संसाधनों, एवं उनकी सौन्दर्यपरक दृष्टि और संवेदनाओं की साक्षी है। शिवसागर ज़िले के डिशियल धूलिया गॉंव में स्थित तलातल घर अहोम स्मारकों में सबसे भव्य और सबसे बड़ा है, और अहोम शक्ति की शिरोबिंदु का प्रतीक है।

North-Side View of the Talatal Ghar. Image Source: Archaeological Survey of India

तलातल घर का उत्तरी ओर का दृश्य। चित्र स्रोत: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण

संक्षिप्त इतिहास

असम में अहोम शासन की गाथा 13वीं सदी की शुरुआत से प्रारंभ होती है जब मौलंग ( ऊपरी म्यांमार और पश्चिमी यूनान के उत्तरी और पूर्वी पहाड़ी इलाकों में कहीं तथाकथित रूप से स्थित) के एक ताई या शान राजकुमार, सुकाफ़ा, ने, 9000 अनुयायियों का नेतृत्व करते हुए ब्रह्मपुत्र घाटी में दक्षिण-पूर्वी सीमा से प्रवेश किया था। उन्होंने 1228 ई. में चराइदेयो (वर्तमान शिवसागर ज़िले से 28 किलोमीटर दूर) में अपना केंद्र स्थापित किया, और आने वाली सदियों में, आक्रमण, सुलह और वैवाहिक संबंधों के माध्यम से पूरी घाटी को अपने राजनीतिक शासन के अधीन कर लिया। इस विस्तार के क्रम में, अहोम राज्य, जो कि एक आदिवासी राजनीतिक गठन के रूप में शुरू हुआ था, एक केंद्रीकृत राज्य में विकसित हो गया। 17वीं शताब्दी में अहोम साम्राज्य के विस्तार और समेकन ने मुगलों का ध्यान आकर्षित किया, और यह लंबी अवधि (1615-1682 ई.) तक अहोम-मुगल संघर्ष का कारण बना। यह संघर्ष 1682 ई. में इटाखुली की लड़ाई में मुगलों की हार के बाद समाप्त हुआ, जिसके बाद, पश्चिम में मनह/मानस नदी तक (जो 1826 ई. में अंग्रेज़ों द्वारा कब्ज़ा किए जाने तक राज्य की पश्चिमी सीमा बनी रही), अहोम ब्रह्मपुत्र घाटी के निर्विवाद स्वामी के रूप में स्थापित हो गए ।

A map of the Ahom kingdom, 1826 CE

अहोम राज्य का नक़्शा, 1826 ई.

अहोम वास्तुकला का विकास

राजा गदाधर सिंह (1681-1696 ई.) के शासन में अहोम लोगों ने मुगलों पर यह निर्णायक विजय प्राप्त की। गदापानी के नाम से भी ज्ञात, वे पहले ऐसे राजा हैं जिन्हें अहोम वास्तुकला के प्रारंभ और विकास का श्रेय दिया जाता है। साम्राज्य के विरुद्ध एक प्रमुख बाहरी खतरे का अंत होने के कारण वास्तुशिल्पीय परियोजनाओं को शुरू करने के लिए पर्याप्त शांति और स्थिरता का माहौल पैदा हुआ होगा। गदाधर सिंह को थाओरा डोल और गुवाहाटी के उमानंद नदी द्वीप में उमानंद मंदिर सहित कुछ मंदिरों,और दिजोईखाना और राहडाई नदियों के ऊपर पत्थर के दो सेतुओं के निर्माण का श्रेय दिया जाता है। परंतु उत्तरवर्ती शासक, रूद्र सिंह और राजेश्वर सिंह, ने इस अवधि की वास्तुकला में संरचनात्मक परिवर्तन किए ।

आज, अहोम स्मारक, शिवसागर ज़िले और उसके आसपास के उन तीन क्षेत्रों में फैले हुए पाए जाते हैं जो राज्य की प्रमुख राजधानियाँ भी थीं: चराइदेयो, गढ़गाँव और रंगपुर। रंगपुर की राजधानी (जो तब तेंगबारी के नाम से जानी जाती थी) 18वीं शताब्दी ई. की शुरुआत में राजा रूद्र सिंह द्वारा स्थापित की गई थी। इतिहासकारों द्वारा उन्हें "असम में गैर धार्मिक वास्तुकला के स्थायी चरण" की शुरुआत करने का श्रेय दिया जाता है। इससे पहले इस क्षेत्र में पत्थर से बनी केवल धार्मिक संरचनाएँ (जैसे कि मंदिर) ही देखने को मिलती थीं। नागरिक और प्रशासनिक उपयोग की संरचनाओं का निर्माण लकड़ी,बाँस, घास-फूस, बेंत, इत्यादि, जैसी अस्थायी और जल्द नष्ट हो जाने वाली सामग्री से किया जाता था। इसका प्रमाण शिहाब-उद-दीन तालिश के लेख से मिलता है, जो मुगल सेनापति मीर जुमला (1662 -63 ई) के साथ असम आए थे। वे लिखते हैं, "पूरे असम में, गढ़गाँव के द्वारों और कुछ मंदिरों को छोड़कर, ईंट, पत्थर या मिट्टी की कोई इमारत नहीं है।" ईंट और पत्थर की चिनाई की शुरूआत के बाद भी, लकड़ी से शाही महलों के निर्माण की पुरानी प्रथा चलती रही और कुछ स्थितियों में यह स्थायी सामग्री के साथ-साथ नियोजित की गई, जैसा कि तलातल घर की वास्तुकला में देखा जा सकता है।

A view of the Talatal Ghar. Image Source: Wikimedia Commons

तलातल घर का एक दृश्य। चित्र स्रोत: विकीमीडिया कॉमन्स

सत्सरी अहोम बुरंजी नामक एक पुराने एतिहासिक वृत्तांत में यह बताया गया है कि तलातल घर की शुरुआत राजा रूद्र सिंघ द्वारा की गई थी। परंतु शुरुआत में इमारत का निर्माण प्रमुख रूप से अर्ध स्थायी और जल्द नष्ट हो जाने वाली सामग्री से किया गया था। ऐसा माना जाता है कि, अग्रगामी शासक, रूद्र सिंघ, निर्माण की नई शैलियों और तकनीकों की शुरुआत करने के लिए कूच बिहार से कारीगर लाए। इस संदर्भ में असम के औपनिवेशिक इतिहासकार सर ऐडवर्ड गेट लिखते हैं, "वे (रूद्र सिंघ) ईंटों का एक महल और एक शहर बनाना चाहते थे परंतु राज्य में कोई नहीं था जो यह जानता हो कि इसे कैसे बनाया जा सकता है। इसलिए, उन्होंने कूच बिहार से घनश्याम नाम के एक कारीगर को बुलाया, जिसकी देख-रेख में रंगपुर में कई ईंटों की इमारतों का निर्माण किया गया… ” राजा राजेश्वर सिंघ के शासन में तलातल घर में ईंटों की कई इमारतें बनाई गईं, और साथ ही तेंगबारी का नाम रंगपुर में बदल दिया गया था।

तलातल घर की वास्तुकला

An aerial view of the Talatal Ghar. Image Source: Archaeological Survey of India

तलातल घर का हवाई दृश्य: चित्र स्रोत: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण

तलातल घर अहोम स्मारकों में सबसे विशाल है। वास्तव में, इस स्मारक का नाम इस इमारत के संरचनात्मक सार को प्रदर्शित करता है। "तलातल" शब्द का अर्थ है "बहु-मंज़िला"। वर्तमान में खड़ी संरचना में उत्तर-दक्षिणी सीध में एक लंबी इमारत शामिल है, जिसके दोनों तरफ़ और बीच में उपभवन बने हैं। भूतल में अर्ध-गोलाकार मेहराब वाले स्तंभों की पंक्तियाँ हैं और खुले और बंद दोनों प्रकार के कक्ष सम्मिलित हैं। ऐसा माना जाता है कि इस मंज़िल में अस्तबल और भंडारण कक्ष हुआ करते थे। ऊपरी मंजिल मुख्य रूप से एक खुली छत है। परंतु, छत की फ़र्श में काटे गए कई गोलाकार छिद्रों को लकड़ी के स्तंभों के लिए पद छिद्रों के रूप में समझा गया है, जो, लकड़ी से निर्मित, ऊपरी मंजिलों के होने का सुझाव देते हैं। उपभवनों में, विशेष रूप से बीच में बने, छत वाली बहु-मंज़िली संरचनाएँ शामिल हैं। छत वाली कुछ संरचनाएँ दो -चला या झोपड़ी शैली में निर्मित हैं, जो कि इस क्षेत्र की एक विशेष वास्तुशिल्पीय परंपरा है। माना जाता है कि एक मेहराबदार प्रवेशद्वार सहित छत वाली अष्टकोणीय संरचना मंदिर के रूप में उपयोग की जाती थी।

The Gola Ghar, built in Do-chala style. Image Source: Wikimedia Commons

दो-चला शैली में बना गोला घर। चित्र स्रोत: विकीमीडिया कॉमन्स

मुख्य परिसर के पास गोला घर या शाही शस्त्रागार है, और इसका निर्माण भी दो-चला शैली में किया गया है। पूरा परिसर एक ईंट की दीवार या गढ़ (जिसके अब केवल अवशेष ही मिलते हैं), एवं एक गढ़ खावोई या खाई, जिसमें कभी पानी हुआ करता था,से घिरा हुआ है।

तलातल घर में, अहोम वास्तुशिल्पीय प्रतिभा, न केवल संरचनात्मक भव्यता में, बल्कि स्थानीय तौर पर उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करके सरलता से तैयार की गई निर्माण सामग्री, में भी दिखाई पड़ती है। संरचना में उपयुक्त ईंटें, विविध आकृतियों और आकारों की थीं। संरचना के कुछ स्तंभों में, कोणीय टेढ़े मेढ़े डिज़ाइन के साथ, गोल सजावटी गोलाकार आधार हैं। एक उल्लेखनीय विशेषता यह है कि शायद इन पैटर्नों को स्तंभों को स्थापित करने के बाद नहीं तराशागया था, बल्कि ये पैटर्न, विशेष रूप से ढाली गईं और इस उद्देश्य के लिए कोणीय आकार में तैयार की गईं ईंटों से बने थे। इसके निर्माण के लिए, उड़द (मटीमाह), बत्तख के अंडों, चिपचिपे चावल (बोरा साऊल), ज़िलिखा (एक स्थानीय फल), राल, घोंघा चूना, आदि, से तैयार करल या करहल नामक एक विशेष सीमेंट पदार्थ का उपयोग किया गया था। घोंघे के खोल के चमचमाते टुकड़े अभी भी दीवारों में दिखाई देते हैं। यह भी माना जाता है कि अहोमों ने इन दीवारों को जल-रोधक बनाने के लिए किसी तकनीक का उपयोग किया होगा, क्योंकि पानी के संपर्क में आने वाली ईंटों की सतह एक तैलीय बनावट प्रदर्शित करती है। इमारत के अंदर के हिस्सों को नाज़ुक फूलों के पैटर्न से सजाया गया है जो कि कंक्रीट में निपुणता से उत्कीर्ण किए गए हैं।

A close view of the brick-work at Talatal Ghar. Image Source: Wikimedia Commons

तलातल घर में ईंट के काम का एक नज़दीकी दृश्य। चित्र स्रोत: विकीमीडिया कॉमन्स

इतिहासकारों द्वारा यह सुझाव दिया गया है कि तलातल घर एक आवासीय महल के बजाय एक प्रशासनिक और सैन्य केंद्र के रूप में बनाया गया था। माना जाता है कि खुली छतों पर जहाँ पहले लकड़ी की संरचनाएँ खड़ी थीं, वहाँ राजा अपना दरबार और अन्य सभाएँ आयोजित किया करते थे। परंतु कुछ इतिहासकारों का अभी भी यह मानना ​​है कि ऊपरी मंज़िलों में शायद आवासीय कक्ष थे। इसलिए इमारत के ऊपरी हिस्से को अक्सर करेंग घर कहा जाता है (जो गढ़गाँव का करेंग घर नहीं था, क्योंकि करेंग एक शाही महल के लिए अहोम द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला सामान्य शब्द है)।

लोक धारणा में तलातल घर

A staircase in the Talatal Ghar. Image Source: Wikimedia Commons

तलातल घर में सीढियाँ। चित्र स्रोत: विकीमीडिया कॉमन्ज़

समय के साथ तलातल घर ने लोगों के बीच, बीते युग के रहस्यों और धन को समेटे हुए, एक रहस्यमय संरचना के रूप में एक पौराणिक स्तर प्राप्त कर लिया है। एक लोकप्रिय कथा के अनुसार तलातल घर में 4 भूमिगत मंज़िलें और दो गुप्त सुरंगें हैं। माना जाता है कि ये सुरंगें आक्रमण के दौरान भाग निकलने का जरिया हैं, जिनमें से एक दिखो नदी की ओर जाती है और दूसरी गढ़गाँव महल की ओर। ऐसा माना जाता था कि ये दुश्मन के आक्रमण की स्थिति में शाही परिवार के लिए भागने के लिए सुरक्षित मार्ग प्रदान करती थीं। भूलभुलैया जैसे भूमिगत कक्षों में लोगों के सदैव के लिए खो जाने की कहानियाँ भी हैं, जिसके परिणामस्वरूप अंग्रेज़ों ने भूमिगत प्रवेश द्वार को बंद कर दिया था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (गुवाहाटी सर्कल) के सहयोग से आई आई टी कानपुर द्वारा 2015 में किए गए एक ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रेडार (जी पी आर) सर्वेक्षण द्वारा किसी गुप्त सुरंग के अस्तित्व में होने का कोई प्रमाण नहीं मिला। परंतु इस अध्ययन द्वारा स्मारक के बाएँ कोने की ओर, बगीचे में, लगभग 1.9 मीटर से लेकर 4 मीटर गहरी संरचनाओं की संभावित उपस्थिति का संकेत मिला है। यह अनुमान लगाया गया है कि यह उप-संरचना भूकंप प्रतिरोध के रूप में निर्मित एक दोहरी नींव हो सकती है।

स्मारक से जुड़ी एक और लोकप्रिय कथा के मुताबिक इमारत के एक बंद कक्ष में (भूमि के ऊपर) राजभरल या अहोम शाही राजकोष छुपा हुआ है, जो आज भी अनगिनत धन से भरा हुआ है।

अपने नाम पर खरा उतारता हुआ तलातल घर

The maze-like interiors of the Talatal Ghar

तलातल घर के भूलभुलैया जैसे अंदरूनी हिस्से

The maze-like interiors of the Talatal Ghar

तलातल घर के भूलभुलैया जैसे अंदरूनी हिस्से

परंतु यह सिर्फ कहानियाँ और कथाएँ ही नहीं हैं जिनसे तलातल घर के बारे में रहस्य और जिज्ञासा उत्पन्न होती है। यह अविश्वसनीय रूप से डिज़ाईन किया गया स्मारक कई तरीकों से अपने नाम पर खरा उतरता है। असमिया में, ताल नाल हेरुआ का मतलब भ्रमित या विचलित होना है। पहली बार आने वाले आगंतुक के लिए, बिना उचित मार्गदर्शन के, तलातल घर की भूलभुलैया जैसे अंदरूनी हिस्सों का भ्रमण करना कठिन साबित हो सकता है। इस संरचना के डिज़ाइन में अंतर्निहित कई दृष्टि-भ्रम (ऑप्टिकल इलूज़न), किसी की भी रास्ता भटकाने और अस्त-व्यस्त करने का काम करते हैं। स्मारक की निचली मंज़िल में कई समरूप द्वार और मेहराबें हैं। मेहराबों के कई समूह जान-बूझकर ऐसे कोणीय तरीके से स्थित किए गए हैं ताकि जब किसी को ऐसा लगे कि वह दीवार तक पहुँच गया है (और मार्ग समाप्त हो गया है), तब एक तरफ़ से द्वारों और मार्गों की एक नई संरचना खुल जाती है, जिससे संरचना के सीमारहित और अटूट होने का आभास मिलता है। खिड़कियाँ थोड़ी हैं, दरवाज़े ऊँचाई में कम हैं, जिसके कारण हर बार प्रवेश करने पर इंसान को झुकना पड़ता है। एक दृष्टि-भ्रम में एकअर्ध-खुला द्वार शामिल है, और जैसे ही कोई दरवाज़े की ओर बढ़ता है, तो उसकी दरार जादुई रूप से सिकुड़ती हुई प्रतीत होती है। इमारत के कुछ हिस्सों में, एक अंतर्निहित ध्वनिक प्रभाव है जिसके कारण हल्की सी खुसफुसाहट भी कई गुना ज़ोर से सुनाई देती है।

अहोम शासकों का पतन

18वीं शताब्दी ई. के दुसरे भाग तक अहोम साम्राज्य आंतरिक विद्रोह, सत्ता संघर्ष और झगड़ों में घिर गया था। एक गृहयुद्ध का रूप धारण करने वाले, मोआमोरिया विद्रोह (मोआमोरिया संप्रदायवादी वैष्णव थे जिनका धार्मिक, वैचारिक और राजनीतिक आधार पर अहोम राज्य से मतभेद था) के कारण अहोम साम्राज्य भीतर से बहुत कमज़ोर हो गया। बर्मी आक्रमणों (1817-1826 ई. के बीच तीन बार) ने इस पहले से ही अशांत राज्य को अंतिम झटका दिया। परंतु, अहोम साम्राज्य पर विजय के कारण बर्मी शासकों का अंग्रेज़ों के साथ आमना-सामना हो गया। बर्मी शासक बाद में अंग्रेज़ों से हार गए और यंदाबू की संधि (1826 ई.) की शर्तों के तहत, असम ब्रिटिश भारत का हिस्सा बन गया।

किसी समय का यह अदम्य साम्राज्य अब नहीं रहा, और ना ही इसके राजा। परंतु तलातल घर इस साम्राज्य की ताकत और वैभव के एक मूर्त अनुस्मारक के रूप में आज भी खड़ा है। इस संरचना की जटिल भूलभुलैया आगंतुकों को आकर्षित करके एक ऐसे युग में ले जाती है जब इस दुर्जेय राजवंश का विशाल ब्रह्मपुत्र के आसपास के मैदानों और पहाड़ियों पर निरंकुश राज्य था।

South-West View of the Talatal Ghar. Image Source: Archaeological Survey of India

तलातल घर का दक्षिण-पश्चिमी दृश्य। चित्र स्रोत: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण