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डमरू

Type: अवनद्ध वाद्य

डमरू मानव कपाल, चर्मपत्र, कपड़ा, रेशम, धातु, पीतल, कपास, लकड़ी, चर्मपत्र और बाँस से बना एक ताल वाद्य यंत्र है। यह एक स्थानीय वाद्य यंत्र है, जो लद्दाख, तमिलनाडु, गुजरात, बिहार और उत्तर भारत के अन्य हिस्सों में पाया जाता है। इसका उपयोग लद्दाख में लामाओं द्वारा अनुष्ठानिक नृत्य में किया जाता है। इसके अलावा, इसका उपयोग तमिलनाडु के ‘कुडुकुडुप्पई अंडी’ और उत्तर भारत में याचकों, सँपेरों, बंजारों और जादूगरों द्वारा किया जाता है।



लद्दाख में डमरू

Material: मानव कपाल, चर्मपत्र, कपड़ा, रेशम, धातु

मानव कपाल से निर्मित रेतघड़ी के आकार का ढोल, जिसके दोनों मुख पर खाल मढ़ी होती है। ढोल की कमर के चारों ओर एक रंगीन कपड़ा और रेशम की पट्टियाँ बँधी होती हैं। साथ ही शीर्ष पर आघात करने के लिए दो गाँठ वाली डोरियाँ जुड़ी होती हैं। यह अनुष्ठानिक नृत्य में लामाओं द्वारा उपयोग किया जाता है।

तमिलनाडु में डमरू

Material: पीतल, कपास

पीतल से बना एक रेतघड़ी के आकार का बेलनाकार ढाँचा। इसके मुख पशु चर्म से ढके और कपास की रस्सी से बँधे होते हैं। बांधने वाली रस्सियों के विपरीत छोरों पर एक गँठिला कपास का तार संलग्न होता है। इस वाद्य यंत्र को एक हाथ से पकड़कर, वादक गाँठों से ढोल के मुखों पर आघात करता है। इस वाद्य यंत्र को तमिलनाडु के 'कुडुकुडुप्पई अंडी' द्वारा उपयोग किया जाता है।

बिहार में डमरू

Material: लकड़ी, चर्मपत्र, कपास

कुंडे से लगी खाल से ढके और कपास की गँठीली रस्सी के साथ रेतघड़ी के आकार का लकड़ी का खोल। इसे बीच से पकड़ा जाता है और ज़ोर से बजाया जाता है। इसे भिक्षुकों, सँपेरों, बंजारों और जादूगरों द्वारा उपयोग किया जाता है।