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दिल्ली: ब्रिटिश भारत की शाही राजधानी

ब्रिटिश भारत की राजधानी के रूप में दिल्ली की बुनियाद महाराजा जॉर्ज V द्वारा १९११ के राज्याभिषेक दरबार में रखी गई थी। इससे पहले भारत की राजधानी कलकत्ता थी ।

राजधानी के कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरण के दो प्रमुख कारण थे:

  • भारतीय परिषद अधिनियम १९०९
  • बंगाल विभाजन के कारण जारी संकट

अँग्रेज़ एक ऐसी जगह चाहते थे जहाँ वे वर्ष के सभी मौसमों में रह सकें। विभिन्न स्थलों की जाँच के बाद अंतिम निर्णय दिल्ली के पक्ष में लिया गया क्योंकि यहाँ आसानी से पहुँचा जा सकता था और यह ग्रीष्मकालीन राजधानी, शिमला के समीप थी। महाभारत और मुग़ल साम्राज्य के साथ दिल्ली का संबंध दोनों हिंदू और मुसलमानों के लिए गौरव का प्रतीक था। इसलिए दिल्ली को इन भौगोलिक, राजनीतिक और ऐतिहासिक आधारों पर नए शाही शहर के रूप में चुना गया।

 

दिल्ली नगर योजना समिति की स्थापना १९१२ में की गई जिसे प्रमुख इमारतों जैसे वाइसरॉय भवन, सचिवालय भवन और नए शहर के सौंदर्यशास्त्र से जुड़े अन्य संरचनात्मक कार्यों के लिए योजना बनाने, उनका विकास करने और उनका अभिकल्प तैयार करने का कार्य सौंपा गया। मार्च १९१२ में लुटियंस इस समिति के सदस्य बने।

 

भारत सरकार वास्तुकारों का चयन करने के लिए एक प्रतियोगिता आयोजित करना चाहती थी जो नए शाही शहर के लिए इमारतों की रूपरेखा तैयार कर सकें। यह प्रतियोगिता भारत, बर्मा, सीलोन और ब्रिटिश द्वीपों में रहने वाले सभी ब्रिटिश निवासियों के लिए थी। इस समय, चूँकि स्थल का चयन नहीं किया गया था, इसलिए शहर का अभिन्यास तय नहीं किया जा सकता था । यह वाँछित था कि वास्तुकला का सामान्य स्वरूप भारतीय कला की परंपराओं को सम्मिलित करे और पुरानी दिल्ली के स्मारकों के साथ सुसंगत हो ।



 

लॉर्ड हार्डिंग ने रेखा-चित्रों के चयन और पर्यवेक्षण में लुटियंस और बेकर की सहायता लेने का सुझाव दिया। ८ मई १९१३ को यह निर्णय लिया गया कि अब कोई प्रतियोगिता नहीं होगी और बेकर और लुटियंस को प्रमुख वास्तुकार और प्रधान वास्तु सलाहकार के रूप में नियुक्त किया जाएगा।

 

समिति छावनी के लिए १५ वर्ग मील और शाही शहर के लिए १० वर्ग मील का क्षेत्र चाहती थी।

अंग्रेज़ों ने निम्नलिखित स्थलों पर विचार किया:

  1. जमुना के पूर्व तट की भूमि - ऐतिहासिक संबद्धता की कमी और बार-बार बाढ़ की चपेट में आने के कारण इस स्थल को अस्वीकृत कर दिया गया।
  2. जमुना के पश्चिमी तट पर दिल्ली के उत्तर में स्थित स्थल - यह दरबार क्षेत्र था जिसमें पहले से ही निवेश किया जा चुका था और यह भारतीय रेलवे से जुड़ा हुआ था। जब आगे की जाँच की गई तो समिति ने पाया कि इस भूमि का अधिग्रहण और प्रबंध महँगा है ।
    रिज क्षेत्र को भी खारिज कर दिया गया क्योंकि विद्रोह स्मारक के बगल में कोई भी नई इमारत खड़ी नहीं की जा सकती थी। उनका मानना था कि यह क्षेत्र एक उद्यान से अधिक और कुछ नहीं बन सकता ।
  3. दिल्ली के दक्षिण में पहाड़ियों की पश्चिमी ढलान - यह क्षेत्र जो कि रोहिला सराय तक जाता है, चट्टानी था । अत: यह दिल्ली के दृश्य को छिपा देता था और इसका कोई ऐतिहासिक महत्व भी नहीं था।
  4. दिल्ली के दक्षिण में पहाड़ियों की पूर्वी ढलान - इस स्थल में भवन निर्माण के लिए एक असीमित क्षेत्र था। समिति ने अंततः इस विशेष स्थल का चयन, इसकी भौतिक स्वच्छता, कलात्मक सौंदर्य और इसके पक्ष में सामान्य विचारण के आधार पर किया।

 


दिल्ली नगर योजना समिति ने अपनी अंतिम रिपोर्ट में एक ख़ाका तैयार किया जिसने नई राजधानी को तीन मुख्य श्रेणियों में विभाजित कर दिया । पहली उन इमारतों पर केंद्रित थी जो सरकार नए शहर को, सरकार का केंद्र बनने से पहले प्रदान करना चाहती थी, दूसरी उन इमारतों पर केंद्रित थी जिन्हें सरकार बाद में नए शहर में जोड़ सकती थी और तीसरी वे इमारतें थी जिनका निजी संस्थाओं द्वारा निर्माण करवाया जाना था। प्रथम श्रेणी को प्राथमिकता दी गई और इसके अंतर्गत आने वाली प्रमुख परियोजनाएँ थी:

  1. सरकारी भवन
  2. सचिवालय
  3. प्रधान सेनाध्यक्ष का आवास
  4. परिषद के सदस्यों का निवास
  5. लिपिकों के लिए निवास
  6. सड़कों, जल आपूर्ति, जल निकासी, पार्क, सार्वजनिक उद्यानों, वृक्षसंवर्धन सहित खुली जगहों, रेलवे का निर्माण।

रायसीना पहाड़ी पर स्थित, सरकारी भवन और दो सचिवालय भवन सरकार के केंद्र बनने थे । रायसीना पहाड़ी की ऊँचाई और उसके पीछे की ऊँची ज़मीन को अनुकूल माना गया।


लुटियंस और बेकर ने भारतीय वास्तुशिल्पीय तत्वों को अपनी इमारतों में सम्मिलित किया। लुटियंस को वाइसरॉय भवन बनाने की प्रेरणा सांची स्तूप और उसकी रेलिंगों से मिली और दूसरी ओर बेकर ने छतरियों और जालियों जैसे वास्तुशिल्पीय तत्वों को सम्मिलित किया। बेकर द्वारा अभिकल्पित संसद भवन, प्रारंभ में एक अलग इमारत नहीं थी बल्कि यह सरकारी भवन का एक हिस्सा था। इसे परिषद कक्ष कहा जाता था। सदस्यों की संख्या में वृद्धि के साथ, सरकार को एक बड़ी इमारत बनाने की आवश्यकता हुई।

नए शहर के नक़्शे में उद्यान, पार्क और फ़व्वारे सम्मिलित थे। समिति द्वारा जामुन, नीम, इमली, अर्जुन, शहतूत, इत्यादि जैसे तेरह प्रकार के विशेष पेड़ों का चयन किया गया। इन किस्मों का चयन इस विचार के आधार पर किया गया था कि एक बार रोपण और पर्याप्त पानी दिए जाने के बाद उन्हें महँगे अनुरक्षण की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।

१९१४ तक परियोजना की अनुमानित लागत रु. १०,०१,६६,५०० थी जो परियोजना के अंत तक काफी बढ़ गयी। यह कार्य काफ़ी हद तक ३१ दिसंबर १९२९ तक पूरा हो गया । वाइसरॉय भवन (जिसे आज राष्ट्रपति भवन के नाम से जाना जाता है) के पहले निवासी लॉर्ड अर्विन थे। नया शाही शहर ६००० एकड़ में फैला था । १९३१ में इसका अंततः उद्घाटन किया गया । यह आज लुटियंस की दिल्ली के नाम से जाना जाता है।